Best Gareebi Shayari गरीबी शायरी: मरहम लगा सको तो किसी गरीब के जख्मों पर लगा देना हकीम बहुत हैं बाजार में अमीरों के इलाज खातिर.
Fek Rahe Tum Khana Kyuki, Aaj Roti Thodi Sookhi Hai,
Thodi Ijzat Se Fenkna Saaheb, Meri Beti Kal Se Bhookhi Hai.
फ़ेक रहे तुम खाना क्योंकि, आज रोटी थोड़ी सूखी है,
थोड़ी इज्ज़त से फेंकना साहेब, मेरी बेटी कल से भूखी है।
- “छीन लेता है हर चीज़ मुझसे ऐ खुदा,क्या तू मुझसे भी ज्यादा गरीब है..”
- तहजीब की मिसाल गरीबों के घर पे है, दुपट्टा फटा हुआ है मगर उनके सर पे है।
- जब भी देखता हूँ किसी गरीब को हँसते हुए, यकीनन खुशिओं का ताल्लुक दौलत से नहीं होता
Ajeeb Mithaas Hai Mujh Gareeb Ke Khoon Me Bhi,
Jise Bhi Mauka Milta Hai Woh Peeta Zaroor Hai.
अजीब मिठास है मुझ गरीब के खून में भी,
जिसे भी मौका मिलता है वो पीता जरुर है।
- Janaaja Bahut Bhaari Tha Us Gareeb Ka, Shayad Saare Aramaan Saath Liye Ja Raha Tha.
जनाजा बहुत भारी था उस गरीब का,
शायद सारे अरमान साथ लिए जा रहा था।
- “वो राम की खिचड़ी भी खाता है रहीम की खीर भी खाता है वो भूखा है जनाब उसे कहाँ मजहब समझ आता है..”
- ऐ सियासत… तूने भी इस दौर में कमाल कर दिया, गरीबों को गरीब अमीरों को माला-माल कर दिया।
- कभी आंसू कभी ख़ुशी बेची हम गरीबों ने बेकसी बेची, चंद सांसे खरीदने के लिए रोज थोड़ी सी जिन्दगी बेची
Sula Diya Maa Ne Bhukhe Bachche Ko Ye Keh Kar,
Pariyan Aayengi Sapno Mein Rotiyan Lekar.
सुला दिया माँ ने भूखे बच्चे को ये कहकर,
परियां आएंगी सपनों में रोटियां लेकर।
- Ye Gandagi To Mahal Walon Ne Failai Hai Saahab, Vrana Gareeb To Sadkon Se Thailiyan Tak Utha Lete Hain.
- ये गंदगी तो महल वालों ने फैलाई है साहब, वरना गरीब तो सड़कों से थैलीयाँ तक उठा लेते हैं।
- “यहाँ गरीब को मरने की इसलिए भी जल्दी है साहब, कहीं जिन्दगी की कशमकश में कफ़न महँगा ना हो जाए..”
- गरीबी बन गई तश्हीर का सबब आमिर, जिसे भी देखो हमारी मिसाल देता है।
- वो जिनके हाथ में हर वक्त छाले रहते हैं, आबाद उन्हीं के दम पर महल वाले रहते हैं
Majbooriyan Haawi Ho Jayein Ye Jaroori Toh Nahi,
Thode Bahut Shauk Toh Gareebi Bhi Rakhti Hai.
मजबूरियाँ हावी हो जाएँ ये जरूरी तो नहीं,
थोडे़ बहुत शौक तो गरीबी भी रखती है।
- Jara Si Aahat Par Jaag Jaata Hai Wo Raato Ko, Ai Khuda Gareeb Ko Beti De To Darvaza Bhi De.
- जरा सी आहट पर जाग जाता है वो रातो को, ऐ खुदा गरीब को बेटी दे तो दरवाज़ा भी दे।
“अपने मेहमान को पलकों पे बिठा लेती है गरीबी जानती है घर में बिछौने कम हैं ..”
भूख ने निचोड़ कर रख दिया है जिन्हें
उनके तो हालात ना पूछो तो अच्छा है
मज़बूरी में जिनकी लाज लगी दांव पर
क्या लाई सौगात ना पूछो तो अच्छा है
- Ameeri Ka Hisaab To Dil Dekh Ke Keejiye Saaheb, Varna Gareebi To Kapdo Se Hi Jhalak Jaati Hai.
अमीरी का हिसाब तो दिल देख के कीजिये साहेब,
वरना गरीबी तो कपड़ो से ही झलक जाती है।
“मैं क्या महोब्बत करूं किसी से, मैं तो गरीब हूँ लोग अक्सर बिकते हैं, और खरीदना मेरे बस में नहीं..”
खिलौना समझ कर खेलते जो रिश्तों से
उनके निजी जज्बात ना पूछो तो अच्छा है
बाढ़ के पानी में बह गए छप्पर जिनके
कैसे गुजारी रात ना पूछो तो अच्छा है
Chehra Bata Raha Tha Ki Maara Hai Bhookh Ne,
Sab Log Kah Rahe The Ke Kuchh Kha Ke Mar Gaya.
चेहरा बता रहा था कि मारा है भूख ने,
सब लोग कह रहे थे कि कुछ खा के मर गया।
Khuda Ke Dil Ko Bhi Sukoon Aata Hoga,
Jab Koi Gareeb Chehra Muskurata Hoga.
खुदा के दिल को भी सुकून आता होगा,
जब कोई गरीब चेहरा मुस्कुराता होगा।
“आज तक बस एक ही बात समझ नहीं आती, जो लोग गरीबों के हक के लिए लड़ते हैं वो कुछ वक़्त के बाद अमीर कैसे बन जाते हैं..”
गरीबों की औकात ना पूछो तो अच्छा है
इनकी कोई जात ना पूछो तो अच्छा है
चेहरे कई बेनकाब हो जायेंगे
ऐसी कोई बात ना पूछो तो अच्छा है
Bhatakti Hai Hawas Din-Raat Sone Ki Dukanon Par,
Gareebi Kaan Chhidwati Hai Tinke Daal Deti Hai.
भटकती है हवस दिन-रात सोने की दुकानों पर,
गरीबी कान छिदवाती है तिनके डाल देती है।
Bahut Jaldi Seekh Lete Hain, Zindagi Ke Sabak,
Gareeb Ke Bachche Baat Baat Par Jid Nahin Karate.
बहुत जल्दी सीख लेते हैं, ज़िन्दगी के सबक,
गरीब के बच्चे बात बात पर जिद नहीं करते।
गरीब नहीं जानता क्या है मज़हब उसकाजो बुझाए पेट की आग वही है रब उसका
रुखी रोटी को भी बाँट कर खाते हुये देखा मैंने,
सड़क किनारे वो भिखारी शहंशाह निकला।
Sahem UthhTe Hain Kachche Makaan Paani Ke Khauf Se,
Mahalon Ki Aarzoo Yeh Hai Ke Barsaat Tej Ho.
सहम उठते हैं कच्चे मकान पानी के खौफ़ से,
महलों की आरज़ू ये है कि बरसात तेज हो।
ड़ोली चाहे अमीर के घर से उठे चाहे गरीब के,चौखट एक बाप की ही सूनी होती है !!
वो जिसकी रोशनी कच्चे घरों तक भी पहुँचती है,
न वो सूरज निकलता है, न अपने दिन बदलते हैं।
Yun Na Jhaanka Karo Kisi Gareeb Ke Dil Mein,
Wahan Hasratein BeLibaas Raha Karti Hain.
यूँ न झाँका करो किसी गरीब के दिल में,
वहाँ हसरतें बेलिबास रहा करती हैं।
दुख तो सब जताते हैं
दुःख तो सब जताते हैं
कोई आँसू नहीं पोछता
अपनी रोटी में से एक दे दूं
कोई नहीं सोचता
जिस दिन लोगों की
सोच बदल जायेगी
गरीबी और भुखमरी
नजर नहीं आएगी
कितना लुटाते हो
खुशियाँ मनाने में
और जेब फट जाती है
रोटी खिलाने में
अजब तेरी कुदरत
गजब तेरी माया
तूने भी कैसा इंसान बनाया
हजारों दोस्त बन जाते है, जब पैसा पास होता है,
टूट जाता है गरीबी में, जो रिश्ता ख़ास होता है।
हमने कुछ ऐसे भी गरीब देखे हैंजिनके पास पैसों के अलावा कुछ भी नहीं
इसे नसीहत कहूँ या जुबानी चोट साहबएक शख्स कह गया गरीब मोहब्बत नहीं करते
अमीर की बेटी पार्लर में जितना दे आती हैउतने में गरीब की बेटी अपने ससुराल चली जाती है
वो रोज रोज नहीं जलता साहबमंदिर का दिया थोड़े ही है गरीब का चूल्हा है
घटाएं आ चुकी हैं आसमां पे… और दिन सुहाने हैंमेरी मजबूरी तो देखो मुझे बारिश में भी काग़ज़ कमाने हैं
घर में चूल्हा जल सके इसलिए कड़ी धूप में जलते देखा हैहाँ मैंने गरीब की सांस को गुब्बारों में बिकते देखा है
क्या किस्मत पाई है रोटीयो ने भी निवाला बनकररहिसो ने आधी फेंक दी,गरीब ने आधी में जिंदगी गुज़ार दी
कमी लिबास की तन पर अजीब लगती हैअमीर बाप की बेटी गरीब लगती है
मोहब्बत भी सरकारी नौकरी लगती हैं साहबकिसी गरीब को मिलती ही नहीं
हम गरीब लोग है किसी को मोहब्बत के सिवा क्या देंगेएक मुस्कराहट थी,वह भी बेवफ़ा लोगो ने छीन ली
कतार बहुत लम्बी थी इस लिए सुबह से रात हो गयीये दो वक़्त की रोटी आज फिर मेरा अधूरा ख्वाब हो गयी
एै मौत ज़रा पहले आना गरीब के घरकफ़न का खर्च दवाओं में निकल जाता है
पेट की भूख ने जिंदगी केहर एक रंग दिखा दिएजो अपना बोझ उठा ना पायेपेट की भूख ने पत्थर उठवा दिए
रजाई की रुत गरीबी के आँगन में दस्तक देती हैजेब गरम रखने वाले ठण्ड से नहीं मरते
गरीबी बन गई तश्हीर का सबब “आमिर”जिसे भी देखो हमारी मिसाल देता है
दोपहर तक बिक गया बाजार का हर एक झूठऔर एक गरीब सच लेकर शाम तक बैठा ही रहा
गरीब लहरों पे पहरे बैठाय जाते हैंसमंदर की तलाशी कोई नही लेता
दौलत है फिर भी अमीर नहीं लगते हो,क्योंकि आप गरीबों-सी सोच रखते हो.
गरीबों के बच्चे भी खाना खा सके त्यौहारों में,तभी तो भगवान खुद बिक जाते है बाजारों में.
सर्दी, गर्मी, बरसात और तूफ़ान मैं झेलता हूँगरीब हूँ… खुश होकर जिंदगी का हर खेल खेलता हूँ.
तुम रूठ गये थे जिस उम्र में खिलौना न पाकर,वो ऊब गया था उस उम्र में पैसा कमा-कमा कर.
अमीरों के शहर में ही गरीबी दिखती है,छोड़ दो ऐसा शहर जहाँ हवा बिकती है.
गरीब के गुनाहों का हिसाब क्या खुदा लेगा,जिसने गिन-गिन कर पूरी जिन्दगी रोटी खाई हो.
जिन अखबारों को रद्दी समझकर फेक देते है,कुछ बदनसीब नींद के लिए बिछौना बना लेते है.
जो गरीबी में एक दिया न जला सका,एक अमीर का पटाखा उसका घर जला गया.
शाम को थक कर टूटे झोपड़े में सो जाता है,वो मजदूर, जो शहर में ऊँची इमारते बनाता है.
कहीं बेहतर है तेरी अमीरी से मुफलिसी मेरी,चंद सिक्कों की खातिर तू ने क्या नही खोया है,माना नही है मखमल का बिछौना मेरे पास,पर तू ये बता कितनी रातें चैन से सोया है.
उन घरों में जहाँ मिटटी के घड़े रहते है,कद में छोटे मगर लोग बड़े रहते है.
अब मैं हर मौसम में खुद को ढाल लेता हूँ,छोटू हूँ… पर अब मैं बड़ो का पेट पाल लेता हूँ.
अमीरी नशा करके पड़ा है कचरे के ढेर में,गरीबी रोटी ढूँढने निकला है कचरे के ढेर में.
न जाने वो किस खिलौने से खेलता है,गरीब का बच्चा जो पूरे दिन मेले में गुब्बारें बेचता है.
इक गरीब दो रोटी में पूरा जीवन गुजार देता है,वो ख्वाहिशों को पालता नहीं है… उन्हें मार देता है.
रोज शाम मैदान में बैठये कहते हुए एक बच्चा रोता है,हम गरीब है इसलिएहम गरीब का कोई दोस्त नहीं होता है.
ऐ खुदा अब बना दे नया इक जहाँ,मिल सके मुफलिसों को भी रोटी जहाँ.
भूखे की थाली में भी अनाज होना चाहिए,साहब !!! गरीबों के लिए भी जिहाद होना चाहिए.
अमीरी ने सिखाया जीना दौलत तोल के, मुफलिसी ने सिखाया जीना मीठा बोल के.
उस मासूम की रोटी की आखिरी उम्मीद तब टूटी,जब बड़े साहब ने चढ़ा कर सीसा कार आगे बढ़ा दी.
उस गरीब ने अपने फटे कपड़े को पूरे ढंग से सिला,पर वो अपनी फटी किस्मत को न सिल सका.
माना वो गरीब है, थोड़ी गन्दी उसकी बसती है,पर सच्ची मुहब्बत उसके ही दिल में बसती है.
गरीबो को गले लगाता कौन है,उनके दर्द में आँसू बहाता कौन है,उनकी मौत पर सियासत छिड़ जाती है,उनके जीते जी इज्जत दिलाता कौन है.
दिमागी रूप से जो गरीब हो जाते है,वही गरीबों का मजाक उड़ाते है.
मेरी गरीबी का मजाक कब तक बनाओगे,अपनी नाकमयाबी को कब तक छुपाओगे.
उसकी गरीबी और भूख का कोई अंदाजा तो लगाएं,उसकी पीठ आतों से जाकर सटी हुई है.